Wednesday, February 15, 2012

विद्यासागर नौटियाल

Dated 15-2—2012

जनवादी लेखक संघ हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं कम्युनिस्ट नेता विद्यासागर नौटियाल के आकस्मकि निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है, उनका रविवार 12 फरवरी को सुबह बेंगलूर में निधन हो गया। उनकी उम्र 79 वर्ष थी। अभी पिछले तीन महीने पहले ही साहित्य सेवा के लिए प्रतिष्ठित श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्फको साहित्य सम्मान से इफ्फको द्वारा नयी दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया गया था जिसके समारोह में दिल्ली के भारी तादाद में आये तमाम साहित्यकारों ने उनको सुना था, उनके निधन की खबर से साहित्य जगत शोक संतप्त है।

उन्होंने अपनी युवावस्था में ही टिहरी की राजशाही के विरुद्ध संघर्ष का झंडा बुलंद किया था, उसके बाद वे जीवनभर किसान और ग्रामीण जीवन से जुडी समस्याओं, शोषित जन की आशा_आकांक्षाओं व संघर्षो को अपने साहित्य के माध्यम से मुखरित करते रहे। "यमुना के बागी बेटे", "भीम अकेला","झुंड से बिछुडा", उत्तर बायां है" आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं। उनके द्वारा रचित "मूक बलिदान", भैंस का कट्या" और "फट जा पंचधार" जैसी कहानियां बहुत चर्चित हुई। उन्होंने "मोहन गाता जाएगा" शीर्षक से आत्मकथा भी लिखी। विरोधी तेवर के कारण कई बार उन्हें जेल की यात्राएं भी करनी पडीं।

23 सितंबर 1933 को टिहरी के मालीदेवल गांव में नारायण दत्त नौटियाल एवं रत्ना नौटियाल के घर जन्मे विद्यासागर की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे देहरादून और बनारस में गये। पिछले डेढ दशक से वे देहरादून में रह रहे थे। अस्वस्थ होने के कारण पिछले महीने वे बेंगलूर अपने बडे बेटे के पास इलाज के लिए चले गए थे। रविवार सुबह अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

दिवंगत नौटियाल के परिवार में उनकी पत्नी, तीन विवाहित पुत्रियां और दो बेटे हैं। नौटियाल को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्फको साहित्य सम्मान के अलावा "पहल सम्मान" और मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के अखिल भारतीय "वीरसिंह देव सम्मान" भी मिला था।

जनवादी लेखक संघ अपने प्रिय लेखक को भावभीनी श्रद्धांजलि देता है तथा उनके परिवारजनों के प्रति संवेदना प्रकट करता है।

मुरलीमनोहरप्रसाद सिंह, महासचिव

चंचल चौहान, महासचिव

शहरयार के निधन पर

दिनांक 14 फरवरी 2012

उर्दू के प्रसिद्ध शायर शहरयार के निधन पर

श्रद्धांजलि

उर्दू के प्रसिद्ध शायर अखलाक़ मोहम्मद खान शहरयारके निधन पर जनवादी लेखक संघ गहरा शोक व्यक्त करता है। वे कुछ समय से फेफड़े के कैंसर से पीडि़त थे। शहरयार का जन्म बरेली, उत्तर प्रदेश के गांव आंवला में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा बुलंदशहर में और उच्च शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई थी। इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने उर्दू के शिक्षक के रूप में काम किया। वे उर्दू विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर भी रहे और वहीं से 1996 में सेवानिवृत्त हुए। शहरयार अपनी ग़ज़लों के लिए बहुत लोकप्रिय थे। उनकी शायरी में यथार्थ और रूमानियत दोनों एक साथ इतनी खूबसूरती से व्यक्त हुए हैं कि उनको अलग-अलग करना लगभग नामुमकिन है। अपने नज़रिये में वे प्रगतिशील भावबोध के कवि थे। उनका पहला काव्यसंग्रहइस्म आज़मथा, जो 1965 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य लोकप्रिय काव्यसंग्रह हैं: ‘हिज्र का मौसम’, ‘सातवां दर’, ‘शाम होने वाली है’, ‘मिलता रहूंगा ख्वाब में’, ‘नींद की किर्चेंआदि। उनको 1987 में अपने काव्यसंग्रहख्वाब का दर बंद हैपर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 2008 में उन्हें सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। शहरयार ने प्रसिद्ध फिल्मकार मुजफ्फर अली की फिल्मोंगमन’(1978), ‘उमराव जान’(1981) औरअंजुमन’ (1986)के लिए भी गीत लिखे जो बहुत ही लोकप्रिय हुए।

जनवादी लेखक संघ की स्थापना के समय से ही शहरयार जलेस से जुड़े रहे। वे संगठन के उपाध्यक्ष भी रहे और सम्मेलनों में शिरकत करते रहे। उनके देहावसान से उर्दू का एक बहुत बड़ा शायर हमारे बीच से चला गया। यह एक अपूरणीय क्षति है। जनवादी लेखक संघ उनके प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता है।

मुरलीमनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव

चंचल चौहान, महासचिव