Monday, October 6, 2008

नया पथ : जुलाई–सितंबर ’08 अंक

संपादकीय
आवाज़ जो गूंजती रहेगी
महमूद दरवेश : चंचल चौहान
महमूद दरवेश की कविता : 'मैं फि़लिस्तीन का आशिक़'
तजु‍र्मा : एजाज़ अहमद
अहमद फ़राज़ : सुरेश कुमार
अहमद फ़राज़ की तीन कविताएं
वेणुगोपाल की दो कविताएं
प्रस्तुति : सुधा सिंह
परत–दर–परत विमर्श
एस.डब्ल्यू. फ़ैलन के कोश की भूमिका
अंग्रेज़ी से अनुवाद: ऐना रुथ जे व रविकांत
फ़ैलन की भूमिका पर टिप्पणी : रविकांत
दिल्ली की ज़बान : सुहैल हाशमी
अनुवाद : कांतिमोहन ‘सोज़’
देहली कालेज: ज्ञानविज्ञान की शुरुआत : मधु प्रसाद
अनुवाद : नरेश ‘नदीम’
सदाबहार हिंदुस्तानी ज़बान : आलोक राय
अनुवाद : संजीव कुमार
हिंदी–उर्दू के बीच संवाद : कृष्णबलदेव वैद
हिंदी उर्दू के साथ साथ : अशोक वाजपेयी
ये अपनी ज़बान है : मंगलेश डबराल
उर्दू रंगमंच : जावेद मलिक
कवि सम्मेलन और मुशायरा : कांतिमोहन ‘सोज़’
फि़ल्मी गीतों की मिलीजुली ज़बान : जवरीमल्ल पारख

साझा समाज : साझा अहसास

बनारस : तीन कविताएं 1. गालिब 2. भारतेंदु 3. केदारनाथ सिंह
विधवा : तीन कविताएं 1. बेवा : हाली 2. विधवा : निराला 3. बेवा : नज़ीर बनारसी

विरासत : आज़ादी के दौर की कुछ उर्दू नज्में
ब्रिटिश शासन : अकबर इलाहाबादी
कराइन कह रहे हैं : अकबर इलाहाबादी
जावेद नामा : इक़बाल
टिप्पणी : आफ़ाक़ अहमद
सरमाया–ओ–मेहनत : इक़बाल
पयामे वफ़ा : चकबस्त
मज़ालिमे पंजाब : जफ़र अली खां
जोश की दो नज्में, अली सरदार जाफ़री, मजाज़, जगन्नाथ आज़ाद, साहिर लुधियानवी, तिलोकचंद महरूम
व फ़ैज़ की एक एक कविता

बहस के इर्द–गिर्द

हिंदी क्षेत्र की बोलियां : दिनेशकुमार शुक्ल
वे ख्वाब देखते हैं ... : बुद्धिनाथ मिश्र
19 वीं सदी में परिस्थितियां और भाषा विवाद : वैभव सिंह

नया पथ का पता : 8 ​विट्ठलभाई पटेल हाउस, नयी दिल्‍ली–110001